" दादी:नानी की पुटलिया से " { यानि आप का घरेलू चिकित्सालय }

" दादी : नानी की पुटलिया से " { यानि आप का घरेलू चिकित्सालय }

"" हमारी परम्परा में लोक - कल्याण का बहुत कुछ ऐसा है जो हमें स्वः निर्भर बनाता है और उस ''प्रकृति '' से भी जोड़ता है |'' प्रकृति ''ने हमारे इर्दगिर्द इतनी अकूत सम्पदा बिखेर दी है कि यदि हम सभी दोनों हाथों से उसे पूरा जीवन समेटते रहें तब भी हम उसका सहस्रांश भी नहीं सहेज पाएंगे | ""

यह आमुख वार्ता हमारे और आप के बीच एक तारतम्य और तादाम्य स्थापित करने और आप को इस तथ्य और सत्य से अवगत करने हेतु भी है '' इतने ज्ञान मात्र से ही आप एक सफल वैद्य या चिकित्सक अथवा डाक्टर नहीं बन जाते हैं " यह सब ज्ञान केवल आप कि सहायता प्राथमिक चिकित्सा के रूप में करता है जब असमय कोई मौसमी पीड़ा अथवा खान- पान की लापरवाही से कोई पीड़ा उभर आवे और आप के आस - पास कोई चिकित्सक उपलब्ध न हो तो इन का प्रयोग आप को तात्कालिक राहत देता है

हमारी परम्परा में लोक - कल्याण का बहुत कुछ ऐसा है जो हमें स्वः निर्भर बनाता है और उस ''प्रकृति '' से भी जोड़ता है |'' प्रकृति ''ने हमारे इर्दगिर्द इतनी अकूत सम्पदा बिखेर दी है कि यदि हम सभी दोनों हाथों से उसे पूरा जीवन समेटते रहें तब भी हम उसका सहस्रांश भी नहीं सहेज पाएंगे |
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